हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा (Hepatocellular Carcinoma)

परिचय

हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा (HCC) एक प्रकार का लीवर कैंसर है, जो लीवर की मुख्य कोशिकाओं (हेपेटोसाइट्स) में विकसित होता है। यह लीवर कैंसर के सबसे आम प्रकारों में से एक है और सामान्यत: गंभीर लीवर रोगों, जैसे हेपेटाइटिस बी और सी संक्रमण, या लीवर सिरोसिस (यकृत का स्थायी क्षतिग्रस्त होना) के कारण होता है। विश्वभर में, खासकर विकासशील देशों में, यह कैंसर मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। भारत में भी हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।

हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा का विकास और प्रभाव

हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा मुख्य रूप से तब विकसित होता है जब लीवर लंबे समय तक किसी प्रकार की क्षति का शिकार होता है। यह क्षति अक्सर लीवर सिरोसिस के रूप में देखी जाती है, जो लीवर के कोशिकाओं में निरंतर सूजन और उनका स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त होने के कारण होती है। सिरोसिस का मुख्य कारण हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, और अत्यधिक शराब का सेवन होता है। इसके अलावा, नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) भी सिरोसिस और लीवर कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकता है, खासकर मोटापा और मधुमेह वाले लोगों में।

कारण

हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा के कई संभावित कारण होते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

हेपेटाइटिस बी और सी वायरस: ये वायरस लीवर की सूजन और क्षति का कारण बनते हैं, जिससे लंबे समय तक लीवर कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है।

लीवर सिरोसिस: किसी भी प्रकार की लीवर सिरोसिस, चाहे वह शराब के कारण हो या अन्य कारणों से, लीवर कैंसर का एक बड़ा कारण हो सकती है।

अफ्लाटॉक्सिन: यह एक प्रकार का मोल्ड है जो अनाज और नट्स में पाया जा सकता है। अफ्लाटॉक्सिन के लंबे समय तक सेवन से लीवर कैंसर का खतरा बढ़ता है।

जीन संबंधी कारण: कुछ लोग जीन के कारण लीवर कैंसर के लिए अधिक संवेदनशील होते हैं, जैसे विल्सन रोग और हेमोक्रोमैटोसिस।

मोटापा और मधुमेह: मोटापा और टाइप 2 मधुमेह से जुड़ा नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) भी HCC के जोखिम को बढ़ा सकता है।

लक्षण

हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा के शुरुआती चरणों में कोई स्पष्ट लक्षण नहीं होते। जब लक्षण दिखाई देने लगते हैं, तब बीमारी काफी बढ़ चुकी होती है। कुछ सामान्य लक्षणों में शामिल हैं:

पेट के दाहिने ऊपरी हिस्से में दर्द या सूजन

अचानक वजन कम होना

भूख न लगना

त्वचा और आंखों का पीला होना (जॉन्डिस)

थकान और कमजोरी

मितली और उल्टी

निदान

हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा का निदान विभिन्न प्रकार के Biochemical test के माध्यम से किया जाता है:जो पैरामेडिकल स्टाफ अपनी लैब में  करते हैं|

रक्त परीक्षण: अल्फा-फेटोप्रोटीन (AFP) नामक एक प्रोटीन का स्तर बढ़ने पर लीवर कैंसर का संकेत मिलता है।

इमेजिंग टेस्ट: अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन और एमआरआई स्कैन लीवर की संरचना में किसी असामान्य वृद्धि या ट्यूमर को पहचानने में मदद करते हैं।

बायोप्सी: यदि इमेजिंग टेस्ट से पुष्टि नहीं हो पाती, तो बायोप्सी के जरिए लीवर के ऊतक का नमूना लिया जाता है, जिससे कैंसर की उपस्थिति का पता चलता है।

रोकथाम

हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा की रोकथाम के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं:

हेपेटाइटिस बी का टीकाकरण: हेपेटाइटिस बी के खिलाफ टीकाकरण से इस वायरस से जुड़े लीवर कैंसर के जोखिम को कम किया जा सकता है।

शराब का सेवन कम करना: शराब का अत्यधिक सेवन लीवर की क्षति का मुख्य कारण है, इसलिए शराब के सेवन को नियंत्रित रखना आवश्यक है।

संतुलित आहार और नियमित व्यायाम: मोटापा और टाइप 2 मधुमेह से बचाव के लिए स्वस्थ आहार और नियमित व्यायाम करना महत्वपूर्ण है।

अफ्लाटॉक्सिन से बचाव: ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करें जो अफ्लाटॉक्सिन से मुक्त हों। अनाज और नट्स को सुरक्षित तरीके से संग्रहित करें।

हेपेटाइटिस सी का इलाज: यदि हेपेटाइटिस सी की पुष्टि होती है, तो इसका इलाज जल्दी करवाएं ताकि लीवर कैंसर का जोखिम कम हो सके।

निष्कर्ष

हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा एक गंभीर लेकिन रोकथाम योग्य लीवर कैंसर है। सही समय पर निदान और उपचार से इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है। लीवर की सुरक्षा के लिए संतुलित जीवनशैली, शराब से परहेज, और हेपेटाइटिस बी व सी से बचाव महत्वपूर्ण है। जागरूकता और नियमित स्वास्थ्य जांच के माध्यम से इस जानलेवा बीमारी से बचा जा सकता है।

By- Shivani Sinha

Faculty of Biochemistry